भारत सरकार द्वारा जुलाई 1991 में अपनाई गई उदार आर्थिक नीति के तहत अन्य उपायों के साथ- साथ सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में सरकारी हिस्सेदारी के आंशिक विनिवेश तथा अर्थव्यवस्था के मूल क्षेत्रों (पेट्रोलियम क्षेत्र सहित) को नियंत्रण व अनुज्ञप्ति - मुक्त (लाइसेंस फ्री) करने का सुझाव दिया गया था। उस समय तक अपस्ट्रीम पेट्रोलियम क्षेत्र में बड़े पैमाने पर सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों का ही एकाधिकार था और इस क्षेत्र को निजी व संयुक्त क्षेत्रों में क्रियाशील कंपनियों के लिए तेजी से खोला जा रहा था। राष्ट्रीय हित में इन सभी कंपनियों के कार्यकलापों पर प्रभावी ढंग से निगरानी रखने हेतु एक एजेंसी स्थापित करने की आवश्यकता महसूस हुई। इसकी व्याख्या डॉ ए.बी. दासगुप्ता, जिन्होंने मुंबई हाई आगार के प्रबंधन की भी समीक्षा की थी, की अध्यक्षतावाली समिति द्वारा की गई थी। इस समिति ने राष्ट्रीय हितों के अनुरूप तेल- क्षेत्रों के विकास कार्यक्रमों में उचित आगार इंजीनियरी प्रैक्टिस के पालन हेतु एक स्वायत्त संरक्षण बोर्ड के सृजन की संस्तुति की थी। तदुपरांत 1992 में स्वर्गीय श्री पी.के. कौल, पूर्व कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया। इस समिति ने भी भारत में हाइड्रोकार्बन संसाधनों के पट्टे एवं लाइसेंस संबंधी कार्यों, सुरक्षा और पर्यावरण, विकास, संरक्षण और आगार प्रबंधन जैसे विनियामक कार्यों के निर्वहन के लिए "हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय" (डीजीएच) नामक एक स्वतन्त्र नियामक संस्था की स्थापना की अनुशंसा की थी। तद्नुसार, भारत सरकार द्वारा दिनांक- 08.04.1993 को जारी संकल्प सं आ-20013/2/92 / ओएनजी-III के तहत पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय की स्थापना की गयी।
भारत सरकार की अधिसूचनाओं का विवरण संलग्न फाइल में देखा जा सकता है।