राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय सहयोग | हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय (डीजीएच)

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डी जी एच का यह द्रढ विश्‍वास है कि अनुसंधान एवं विकास,अन्वेषण व पेट्रोलियम  गतिविधियों का आवश्यक एवं अविभाज्या संगठक अंग है | इस धारणा को ठोस आकर देने क लिए डी जी एच ने कई राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय संस्थाओं की सहभागिता में पेट्रोलियम के अन्वेषण से संबंधित विभिन्न विषयों में अनुसंधान एवं विकास की पहल की |

 

राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्तरीय सहभागिता की इस परिधि मे ऐसी कई राष्ट्रीय व अंतर्राष्तरीय संस्थाओं की पहचान की गयी जिनसे अन्वेषण एवं पेट्रोलियम के क्षेत्र परस्पर लाभ के लिए सहभागिता की जा सके |

 

इसे अमल मे लाने के लिए सहभागिता करने वाली दोनों सस्थाओं के बीच एक समझोता पत्र लिखा जाता है| उदाहरण के लिए डी जी एच एवं राष्ट्रीय व अंतर्राष्तरीय संस्था |

 

तेल उद्योग विकास बोर्ड की निधि का सामरिक व उर्जा संरक्षण परियोजनाओं एवं तेल क्षेत्र की अनुसंधान एवं विकास गतिविधियो मे करने हेतु, सचिव,पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अनुमोदन पर तेल उद्योग विकास बोर्ड ने अप्रैल 2009 मे ,एक समिति का गठन किया | डी जी एच के महानिदेशक इस समिति के अध्यक्ष होते है | इस समिति का मुख्य उद्‍देश्य विभिन्‍न भारतीय संस्थाओं द्वारा तेल उद्योग विकास बोर्ड अनुसंधान से अनुदान प्राप्त करने हेतु प्रस्तुत की गयी अनुसंधान एवं विकास, व उर्जा संरक्षण परियोजनाओं का निरीक्षण करना होता है |

 

यह समिति वर्ष की प्रत्येक तिमाही मे एक बार तेल उद्योग विकास बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत होकर विभिन्न परियोजनाओं की प्रगति की स्तिथि बताती है और विभिन्न परियोजनाओ के लिए अपनी अनुशंसा प्रस्तुत करती है |

 

अन्वेषण एवं पेट्रोलियम के उच्चस्तरीय शोधन के क्षेत्र मे एम ओ पी एन जी /डी जी एच एवं राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय संस्थाओ के बीच उच्चस्तरीय अन्वेषण व पेट्रोलियम के शोधन के लिए हस्ताक्षर किये गये अनुबंध पत्रों की वर्तमान स्तिथि निम्नानुसार है :-

 

वर्तमान मे कूल सात एम ओ यू सक्रिय हैं

 

  • आई एफ एम- जी ई ओ एम ए आर, जर्मनी
  • जी एफ जेड पोस्टडेम, जर्मनी
  • जे ओ जी एम ई सी, जापान
  • यू एस जी एस, यू एस ए
  • डी ओ एस, यू एस ए
  • एन पी डी, नार्वे
  • आई ओ सी एल, इंडिया

 

वर्तमान मे कूल सात एम ओ यू सक्रिय हैं

 

1)आई एफ एमजी   एम  आरजर्मनी

 

जर्मनी के लेबनीज इन्स्टिट्यूट ऑफ मरीन साइंसेस(आई एफ एम-जी ई ओ एम ए आर) तथा डी जी एच ने 30 अगस्त 2010 को एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किया जो कि 29 अगस्त 2015 तक वैध था| इस अनुबंध के अनुसार मरीन गैस हाइड्रेट के अन्वेषण एवं तकनीक का विकास इस सहभागिता का क्षेत्र था|

 

2. जी एफ ज़ेड पॉट्सडैम, जर्मनी

 

हाईड्रोकार्बन महानिदेशालय (डीजीएच) तथा जर्मन भूविज्ञान अनुसंधान केंद्र (जीएफजेड) के बीच दिनांक 17 अप्रैल 2012 को एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए जिसकी वैधता 16 अप्रैल 2017 तक है । इस ज्ञापन का मुख्य उद्देश्य “गैस हाइड्रेट प्रयोगशाला अध्ययन” में साझा अनुसंधान करना है । संयुक्त अनुसंधान परियोजनाओं के मुख्य विषय निम्नलिखित हैं:

 

• प्राकृतिक और कृत्रिम हाइड्रेट नमूनों की उष्मागतिक तथा भौतिक गुणों का प्रावस्था परिवर्तन, वियोजन की पूर्ण ऊष्मा व ऊष्मा धारिता तथा निर्माण एवं संधि प्रक्रियाओं तथा गतिकी के सन्दर्भ में अध्ययन |
• अवसादों (सेडीमेंटस) में प्राकृतिक गैस हाइड्रेट के व्यवहार को समझने हेतु प्रयोगात्मक अध्ययन तथा हाइड्रेट युक्त आगारों से मीथेन गैस के उत्पादन हेतु नव प्रवर्तनशील विधियों का विकास |
• कार्बन डाइऑक्साइड या अन्य गैसों तथा तरल पदार्थों का उपयोग करते हुए प्राकृतिक गैस हाइड्रेटों में मीथेन की आणविक प्रतिस्थापन से संबंधित अध्ययन |
• गैस हाइड्रेट्स के स्पेक्ट्रोस्कोपी वर्गीकरण |
• गैस हाइड्रेट्स की थर्मो उत्प्रेरक सहभागिता |
• गैस हाइड्रेट युक्त अवसादों से गैस उत्पादन की विभिन्न तकनीकों का मूल्यांकन |

 

3. जापान तेल – गैस – धातु राष्ट्रीय निगम (जोगमेक), जापान

 

हाईड्रोकार्बन महानिदेशालय तथा जोगमेक, जापान ने दिनांक 16 फरवरी, 2007 को एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए जिसकी वैधता 15 फरवरी 2016 तक है । इस ज्ञापन का उद्देश्य गैस हाइड्रेट अनुसंधान एवं विकास पर तकनीकी जानकारियों का आदान-प्रदान, कार्यशालाओं तथा बैठकों का आयोजन करना है | संयुक्त अनुसंधान परियोजनाओं के मुख्य विषय निम्नलिखित है:

 

• मीथेन हाइड्रेट प्रौद्योगिकी पर सहयोग |
• समझौता ज्ञापन के अनुसार दोनों पक्षकारों के प्रतिनिधि जोगमेक और डीजीएच द्वारा अपनाई जाने वाली मीथेन हाइड्रेट प्रौद्योगिकी पर सहयोग के लिए निर्देश और समन्वय प्रदान करने हेतु कार्ययोजना तैयार करने सम्बन्धी जानकारी लेंगे |
• समझौता ज्ञापन के अंतर्गत सहयोगी गतिविधियों में तकनीकी ज्ञान और जानकारियों का आदान प्रदान करना और आपसी हितों के लिए अनुसंधान में लगे स्टाफ के सदस्यों द्वारा दौरों, बैठकों / कार्यशालाओं का आयोजन करना शामिल किया जा सकता है ।
• जोगमेक के वैज्ञानिकों ने एनजीएचपी अभियान – 01 एवं 02 में सक्रिय रूप से भाग लिया है |

 


4. अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण, आंतरिक विभाग, (यूएसजीएस), संयुक्त राज्य अमेरिका

 

हाईड्रोकार्बन महानिदेशालय तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के आंतरिक विभाग के अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (यूएसजीएस) ने दिनांक 16 दिसंबर 2008 को एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए | यह एक मुक्तांत समझौता ज्ञापन है जिसका उद्देश्य गैस हाइड्रेट से जुड़े अन्वेषण खतरों और पर्यावरण के मुद्दों पर कार्रवाई करना तथा गैस हाइड्रेट के लिए क्षेत्र अध्ययन और अनुसंधान करना है | संयुक्त अनुसंधान परियोजनाओं के मुख्य विषय निम्नलिखित है:


• पक्षकारों के बीच चल रहे पारस्परिक कार्यक्रमों के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए तकनीकी जानकारियों का आदान-प्रदान, दौरे करना, प्रशिक्षण, कार्यसंधि और संगत सहकारी अनुसंधान में सहयोग प्रदान करना | सहयोग सम्बन्धी विशिष्ट क्षेत्रों को इसमें शामिल किया जा सकता है, किन्तु यह पक्षकारों तक ही सीमित नहीं रहेगा | इस प्रकार के पारस्परिक हित विषय निम्नलिखित हैं:

 

i. संसाधन अन्वेषण और मूल्यांकन तथा गैस हाइड्रेट के अस्तित्व से सम्बद्ध ख़तरों और पर्यावरण के मुद्दों सहित समुद्री विज्ञान सम्बन्धी अनुसन्धान ।
ii. गैस हाइड्रेट की ऊर्जा संसाधनों की समर्थता का आकलन;
iii. गैस हाइड्रेट अनुसंधान क्षेत्र अध्ययन सम्बन्धी अनुसंधान;
iv. गैस हाइड्रेट के अन्वेषण एवं शोषण से संबंधित संयुक्त अनुसंधान; और
v. सूचना प्रबंधन

यूएसजीएस, एनजीएचपी अभियान -01 और 02 के तकनीकी पहलुओं से जुड़ा रहा है तथा इसके वैज्ञानिक एनजीएचपी वैज्ञानिकों  के  साथ  सक्रिय रूप से सहयोग  कर  रहे  हैं ।

 

5. राज्य विभाग, डॉस, संयुक्त राज्य अमेरिका

 

राज्य विभाग (डीओएस), संयुक्त राज्य अमेरिका और एमओपीएनजी,भारत सरकार के बीच दिनांक 6 नवंबर 2010 को समझौता ज्ञापन पर हस्‍ताक्षर किए गए । यह एक मुक्तांत ज्ञापन (ओपन एंडेड एमओयू) था जिसका उद्देश्य भारत में शैल्य गैस संसाधनों के अध्ययन और मूल्यांकन विषयक क्षेत्रों की जानकारी और सुविज्ञता का आदान-प्रदान करना था । इस ज्ञापन के मुख्य विषय निम्नलिखित है:

 

• शैल्य गैस संसाधनों का मूल्यांकन
• तकनीकी अध्ययन
• नियामक ढांचे पर विचार-विमर्श और
• अनुभवों के आदान-प्रदान के माध्यम से निवेश में संवर्धन

 

इस ज्ञापन के तहत यूएसजीएस ने तीन भारतीय अवसादी द्रोणियों - खंभात, कृष्णा-गोदावरी और कावेरी के लिए शैल्य गैस और तेल के उत्पादन योग्य भंडारों का तकनीकी अनुमान लगाया है ।

 


6. नार्वेजियन पेट्रोलियम महानिदेशालय (एनपीडी), नॉर्वे


नार्वे पेट्रोलियम महानिदेशालय और हाईड्रोकार्बन महानिदेशालय के बीच दिनांक 21 सितंबर 2012 को समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए जिसकी वैधता 20 सितंबर 2017 तक है । इस ज्ञापन का उद्देश्य पेट्रोलियम संसाधन प्रबंधन, मानव संसाधन विकास तथा अपस्ट्रीम क्षेत्र में पेट्रोलियम सम्बंधित अन्वेषण एवं उत्पादन व प्रौद्योगिकी साझा करना है । इस ज्ञापन के मुख्य विषय निम्नलिखित हैं:

 

• पेट्रोलियम क्षेत्र के अंतर्गत पेट्रोलियम संसाधन प्रबंधन (एनपीडी / डीजीएच) सम्बन्धी अनुभवों एवं ज्ञान को साझा करना ।
• नॉर्वे में प्रासंगिक पेट्रोलियम प्रशिक्षण संस्था द्वारा प्रशिक्षण में सहायक बनना ।
• स्वदेशों में अपस्ट्रीम हाइड्रोकार्बन उद्योगों के बीच पेट्रोलियम संबंधित अनुसंधान व विकास तथा प्रौद्योगिकी साझा करने में सहयोग प्रदान करना ।

माननीय अंतर्राष्ट्रीय पेट्रोलियम उद्योग पद्धति(जीआईपीआईपी), स्थल जीर्णोद्धार और आईओआर / ईओआर प्रौद्योगिकी क्षेत्र में एनपीडी का सहयोग लिया जा रहा है ।

 

7. आईओसीएल, भारत


इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (आईओसीएल) और  हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय के बीच दिनांक 3 जनवरी 2013 को समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए जिसकी वैधता 2 जनवरी 2016 तक है । इस ज्ञापन का मुख्य उद्देश्य शैल्य तेल (शेल ऑयल) पर अध्ययन करना है | तेल शेल संबंधित अध्ययन के लिए इस समझौता ज्ञापन पर हस्‍ताक्षर  किए गए । इस ज्ञापन के अंतर्गत आईओसीएल को निम्नलिखित जिम्मेदारियां सौपी गई हैं:


• प्रासंगिक अध्‍ययन के लिए संबंधित क्षेत्रों के नमूने प्राप्त करना - डीजीएच शैल्य तेल की साहित्यिक समीक्षा में सहायता करेगा ।
• विभिन्न शैल्य तेल नमूनों का वर्गीकरण करना ।
• विभिन्न विलायकों (सॉल्वैंट्स) का उपयोग करते हुए शैल्य तेल से तेल निकालना |
• निकाले गए तेल का वर्गीकरण व अध्ययन करना ।
• शैल्य तेल से प्राप्त तेल की पेट्रोलियम रिफाइनिंग में अगली प्रोसेसिंग के लिए व्यवहार्यता अध्ययन करना |
• आईओसीएल द्वारा किए गए सभी अध्ययनों के परिणाम को रिपोर्ट के रूप में डीजीएच के साथ साझा करना ।
आईओसीएल ने डीजीएच द्वारा उपलब्‍ध कराए गए शैल्य तेल नमूनों का अध्ययन कर लिया है ।