भूभौतिकीय डाटा अभिलेखीय | हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय (डीजीएच)

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भूभौतिकीय डाटा अधिग्रहण और सर्वेक्षण

डीजीएच द्वारा भूकंपीय डाटा अधिग्रहणः- डीजीएच द्वारा किये गये सैद्धान्तिक (speculative) सर्वेक्षणों का उद्देश्य भारतीय बेसिनों में अनन्वेषित और बहुत कम अन्वेषित क्षेत्रों के बारे में हमारा ज्ञानवर्धन करना है। डीजीएच ने हमारी अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिये 2 लाख वर्ग किमी से भी अधिक क्षेत्र का कई बार सर्वेक्षण किया है, जिनमें से 84 प्रतिशत अपतटीय और 16 प्रतिशत तटवर्ती क्षेत्र हैं।

डीजीएच द्वारा शुरू किए गए सर्वेक्षणः
कुल क्षेत्र में से, 1,642 मिलियन वर्ग किलोमीटर (82 प्रतिशत) का सर्वेक्षण पूर्वी और पश्चिमी अपतटीय और अंडमान क्षेत्र में उपग्रह गुरुत्वाकर्षण सर्वेक्षण था। पूर्वी अपतटीय और अंडमान में उसी क्षेत्र में संयुक्त उपक्रम अपतटीय अनुमानित भूभौतिकीय सर्वेक्षण 0.246 मिलियन वर्ग किलोमीटर (12 प्रतिशत) था। बाद के इन सर्वेक्षणों में संरचना, टेक्टोनिक्स, अवसादीय मोटाई के बारे में महत्वपूर्ण सुराग दिये हैं और गहरे पानी में उनकी प्रमाणिकता है, और मॉडलिंग अध्ययन और हाइड्रोकार्बन संभावित नक्शे तैयार करने के लिए बहुमूल्य सूचनाएं प्रदान की हैं।

• उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश के तटवर्ती क्षेत्रों में 1997-98 में लगभग 0.0530 लाख वर्गकिमी की एक 2डी भूकंपीय क्षेत्र का पता लगा था। 2002-03 में तकरीबन 0.050 लाख वर्ग किमी क्षेत्र में 2डी भूकंपीय सर्वेक्षण को बिहार में दोहराया गया था। यह सर्वेक्षण विंध्यन और गंगा बेसिनों के लाभकारी जाल/ढांचे को प्रदर्शित करने हेतु किये गये थे। निचले हिस्से की एक नई विंध्याजीवाश्मिकी-खाड़ी जिसमें कई भूमिगत उच्च और नीचे विशेषताएं सम्मिलित थी पहली बार उनके मानचित्र बनाए गये। इन अध्ययन के कारण कुछ संभावित क्षेत्रों का सीमांकन किया गया और नेल्प के दूसरे दौर के अंर्तगत विंध्य और गंगा घाटी के प्रत्येक 1 ब्लॉक को नये डेटा के साथ पुरस्कृत किया गया। एक और ब्लॉक को नेल्प-4 दौर में पुरस्कृत किया गया। 2003-04 में चंबल घाटी क्षेत्र से 805.0 जी.एल.के. 2डी भूकंपीय डेटा विंध्य घाटी के पश्चिमी भाग की संभावनाओं के आकलन के लिए अधिग्रहण किये गये। नेल्प-5 के तहत एक ब्लॉक विंध्य बेसिन में पुरस्कृत किया गया।
• अंडमान के गहरे पानी तथा पूर्वी और पश्चिमी समुद्र तट सहित भारत के दक्षिणी सिरे में, 1999 और 2007 के बीच 2डी भूकंपीय सर्वेक्षण किये गये, जिनमें लगभग कुल 41,174 एलकेएम डेटा प्राप्त किये गये।
• विंध्य बेसिन की चंबल घाटी में 0.0350 लाख वर्ग किमी से भी अधिक और कच्छ तटवर्ती में 0.0430 लाख वर्ग किमी से भी अधिक क्षेत्र पर भूरसायन सर्वेक्षण किये गये। इन 0.0430 लाख वर्ग किमी क्षेत्र में से 0.0330 लाख वर्ग कि.मी. क्षेत्र कच्छ का टोही (एयरो-चुंबकीय) सर्वेक्षण क्षेत्र था जो 0.0380 लाख वर्ग किमी के भीतर आता है, और इसलिए इस क्षेत्र को योग के प्रयोजनों के लिए शामिल नहीं किया गया है। इन क्षेत्रों में एकत्रित नमूने तलछटी की परिपक्वता और सी2+ गैसों की उपस्थिति दर्शाते हैं। वर्ष 2003-04 के दौरान, छत्तीसगढ़ बेसिन में 350 मिट्टी के नमूनों को भूरसासन अध्ययन के लिए एकत्र किया गया, जो लगभग 0.0350 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कवर करते हैं। वर्ष 2004-05 के दौरान कुडप्पा और भीम-क्लादगी घाटियों में भूरसायन सर्वेक्षण किये गये और इन घाटियों में 0.1180 लाख वर्ग किमी अतिरिक्त क्षेत्र कवर किये गये। वर्ष 2005-06 के दौरान, मिजोरम और असम-अराकन बेसिन क्षेत्र में क्षेत्रीय सतह भूरसायन सर्वेक्षण किए गए। 300 मिट्टी के नमूने जो इस घाटी के लगभग 10,000 वर्ग कि.मी. के एक क्षेत्र को कवर करते थे मौजूदा सड़क के किनारे इक्कठा किये गये और हल्की हाइड्रोकार्बन गैसों के लिए उनका विश्लेषण किया गया।
• पहली बार एनजीआरआई के माध्यम से डीजीएच द्वारा कम अपतटीय भूरसायन सर्वेक्षण शुरू किए गए। मन्नार की खाड़ी के अपतटीय परित्यक्त ब्लॉक केके-ओएसएन-2000/1 में कोर के नमूने एकत्र करने के प्रयास किये गये। राष्ट्रीय समुद्र प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईओटी) के अनुसंधान यान सीआरवी सागरपूर्वी को इस उद्देश्य के लिए इस्तेमाल किया गया था। हालांकि, खराब कोर नमूने प्राप्त होने के कारण इस अभियान को निलंबित करना पड़ा। अब पांडिचेरी क्षेत्र के अपतटीय क्षेत्र में परित्यक्त ब्लॉक सीवाई-ओएस/2 के हिस्से में सर्वेक्षण शुरू करने का प्रस्ताव है।
• डीजीएच ने असम और अरुणाचल प्रदेश के पड़ोसी क्षेत्र में तेल शेल संसाधनों के आकलन के अध्ययन शुरू कर दिये हैं। जांच का पहला चरण 2006 के अंत में शुरू होने की संभावना है।
• डीजीएच और एनजीआरआई द्वारा संयुक्त रूप से डेक्कन साइनक्लिज़ के पश्चिमोत्तर भाग में एकीकृत भूभौतिकीय सर्वेक्षण किये हैं, जिनमें अधिकतम 3 किलोमीटर मोटाई के साथ उप-टैपियन मेसोजाविक-गोंडवाना तलछटियों का पता चला।
• हिमालय समुद्र के बीचोबीच उभरी चट्टान क्षेत्र में वर्ष 2003-04, 2004-05 और 2005-06 के दौरान एयरो-चुंबकीय 24,723 लाइन किमी सर्वेक्षणों किए गए।