डीजीएच को प्रमुख तौर पर भारतीय ईएंडपी संबंधित भूमि प्रदान करने के लिये विभिन्न गतिविधियों के प्रबंधन की जिम्मेदारी सौंपी गई है। वे सब अन्वेषण ब्लॉक,उत्पादन भागीदारी ठेकों के क्रियान्वयन, निगरानी और विकसित क्षेत्रों आदि से संबंधित हैं। भारत में लगभग 3.14 अरब वर्ग किलोमीटर अनुमानित तलछटी क्षेत्र है, जिसमें 26 तलछटी घाटियां शामिल हैं।
पारंपरिक ईएंडपी भूमिः
पारंपरिक घरेलू अन्वेषण और कच्चे तेल एवम प्राकृतिक गैस के उत्पादन के लिये चार अलग-अलग व्यवस्थाओं के तहत एक निश्चित अवधि के लिये पेट्रोलियम अन्वेषण लाइसेंस (पीईएल) प्रदान किये गये हैं।
1. नामांकन आधारितः
1970 दशक के अंत तक, भारतीय ईएंडपी उद्योग में दो राष्ट्रीय तेल कंपनियों (एनओसी) - ओएनजीसी और ओआईएल का प्रभुत्व था जिन्हें नामांकन आधार पर पीआईएल प्रदान किये जाते थे। अन्वेषण मुख्य रूप से तटवर्ती और अपतटीय तक ही सीमित थे।
2. नेल्प-पूर्व अन्वेषण ब्लॉकः
1980 में नेल्प लागू करने से पहले निजी कंपनियों को 28 अन्वेषण ब्लॉक पुरस्कृत किये जाते थे हाइड्रोकार्बन की खोज के बाद जिनमें ओएनजीसी और ओआईएल के पास इन ब्लॉक में भाग लेने के अधिकार प्राप्त थे। 1993 में, भारत सरकार ने भारत के हाइड्रोकार्बन क्षमता पर अज्ञात तलछटी घाटियों की जानकारियों को अपडेट करने के लिये भूभौतकीय और अन्य सर्वेक्षणों को प्रस्तुत किया। एक बार इन ब्लॉक में सर्वेक्षण पूरा हो जाने के बाद, उन्हें आगे अन्वेषणों के दौर आवंटित किये गये। लाभ की आशा से किया जाने वाला यह दूसरा सर्वेक्षण दौर 1994 में और तीसरा दौर 1995 में शुरू किया गया था। तीसरे दौर को संयुक्त उद्यम सट्टा सर्वेक्षण दौर (जेवीएसएसआर) के नाम से जाना गया था जिसमें डीजीएच द्वारा जोखिम सहभागिता/लागत साझा 50 प्रतिशत तक की पूंजी का प्रावधान किया गया था।
3. नेल्प-पूर्व क्षेत्र की खोज या विकास के दौरः
सरकार ने खोज किये क्षेत्र (ओएनजीसी और ओआईएल द्वारा खोजे गये प्रमाणित भंडार) छोटे/मध्यम आकार के पेट्रोलियम खनन पट्टे (पीएमएल) अगस्त 1992 और अक्तूबर 1993 में निजी क्षेत्रों को प्रस्तुत किये थे। 1992-1993 के दौरान आपरेटरों को दिये उत्पादन पुरस्कृत साझा अनुबंधों (पीएससी) की प्रमुख विशिष्टता निजी कंपनी के रूप में ओएनजीसी/ओआईएल के साथ भागीदारी हित थे। इन दौर में विभिन्न निजी ईएंडपी आॅपरेटरों से अप्रत्याशित प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुई थी। भारत सरकार द्वारा 29 खोजे गये क्षेत्रों के लिये 28 अनुबंध हस्ताक्षरित किये गये थे। इस व्यवस्था के अंर्तगत, सभी वैधानिक शुल्क जिनमें रायल्टी,उपकर, सीमा शुल्क आदि शामिल थे ठेकेदारों या संयुक्त उपक्रमों द्वारा देय थे। छोटे क्षेत्रों (1992) के लिये हस्ताक्षर/उत्पादन बोनस ओएनजीसी और ओआईएल द्वारा देय थे जबकि मध्यम और खोेजे गये क्षेत्र संयुक्त उपक्रमों द्वारा देय थे।
4. नई अन्वेषण लाइसेंसिंग नीति (नेल्प)
कालक्रमः
नेल्प के अंर्तगत, अंर्तराष्ट्रीय, निजी और विदेशी कंपनियों को ब्लॉक नीलामी प्रक्रियाओं के माध्यम से पुरस्कृत किये गये थे जिनमें एनओसी यानि ओएनजीसी और ओआईएल भी प्रतिस्पर्धा में समान आधार पर भाग ले रहे थे। सरकार द्वारा स्वस्थ प्रतिस्पर्धा बनाए रखने की दिशा में कई उपाय अपनाये गये थे और देश में तेल और गैस की खोज और उत्पादन के लिये सरकारी भागीदारी नेल्प के तरीके से की गई थी। नेल्प के कारण न केवल हाइड्रोकार्बन के अन्वेषण में तेजी आई बल्कि देश में अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी और संचालन/प्रबंधन की दक्षता में भी सुधार हुआ।
सीबीएम क्षेत्रः
कोयले में निहित प्राकृतिक गैस (सीबीएम) है। इसमें मुख्य रूप से गैस शामिल है, वह गैस जिसका उपयोग हम घरों को गर्म करने, बिजली उत्पादन और औद्योगिक ईंधन उत्पन्न करने के लिये करते हैं। सीबीएम को आमतौर पर प्राकृतिक गैस के एक “अपरंपरागत“ रूप में संदर्भित किया जाता है क्यूंकि इसे मुख्य रूप से कोयले को सोखकर संग्रह किया जाता है बजाय चटट्टान में छिद्र किये, जैसा कि अधिकांशतया परंपरागत गैस में किया जाता है। गैस कोयले में बूंद के दबाव की प्रतिक्रिया द्वारा रिलीज़/निर्गमन की जाती है।
कोल बेड मीथेन (सीबीएम), एक अपरंपरागत प्राकृतिक गैस का स्त्रोत अब भारत में ऊर्जा संसाधन बढ़ाने के एक वैकल्पिक स्त्रोत के रूप में माना जाता है। भारत में विश्व का पांचवां सबसे बड़ा प्रमाणित कोयला भंडार है। विश्व में भारत पांचवां सबसे विशाल प्रमाणित कोयला भंडार है और इस प्रकार सीबीएम अन्वेषण और दोहन की यहां महत्वपूर्ण संभावनाएं हैं। देश के 12 राज्यों में अनुमानित लगभग 92 खरब घन फुट (2600 बीसीएम) सीबीएम संसाधन हैं। देश की सीबीएम संभावनाओं का दोहन करने के लिए, भारत सरकार ने 1997 में एक नीति गठित की थी जिसमें एक प्राकृतिक गैस के नाते सीबीएम का अन्वेषण और दोहन तेल क्षेत्रों (नियमन एवं विकास) अधिनियम 1948 के प्रावधानों (ओआरडी अधिनियम 1948) और पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस नियम, 1959 (पीएंडएनजी नियम 1959) के प्रावधानों के अंर्तगत पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय द्वारा प्रशासित किया जाएगा।
सीबीएम ब्लॉकों को कोयला मंत्रालय (एमओसी) और सेंट्रल माइन प्लानिंग एंड डिजाइन इंस्टीटयूट (सीएमपीडीआई), रांची के करीबी पारस्परिक क्रिया के साथ डीजीएच द्वारा तराशा गया था। सीबीएम नीति के तहत, आज तक, सीबीएम बोली के चार दौर पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय द्वारा लागू किये गये थे, जिनके परिणामस्वरूप 33 सीबीएम ब्लॉक (नामांकन पर 2 ब्लॉक और 1 ब्लाॅक विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (एफआईपीबी) मार्ग के माध्यम से) आवंटित किये गये थे। जो कुल अन्वेषण योग्य उपलब्ध कोयला ब्लॉक के 26000 वर्ग किलोमीटर में से 16613 वर्ग किलामीटर को कवर करते थे उन्हें शामिल किया गया था। आज की तारीख में, देश में अधिकांश सीबीएम अन्वेषण और उत्पादन गतिविधियां घरेलू भारतीय कंपनियों द्वारा चलाई जा रही हैं। 33 सीबीएम ब्लॉक के आवंटन पुरस्कृत करने के लिये अनुमानित सीबीएम संसाधान, लगभग 62.4 खरब घन फुट (1767 अरब घन मीटर) हैं, जिसमें से अब तक 9.9 खरब घन फुट (2,80,34 बीसीएम) में गैस पाए जाने के रूप में (जीआईपी) स्थापित किया जा चुका है।